अरविन्द केजरीवाल देश के सर्वाधिक कम राजनीतिक शक्ति सम्पन्न मुख्यमंत्री हैं, जिसकी नकेल उपराज्यपाल के हाथ में है। लेकिन, वह केन्द्र सरकार की नाक के नीचे नहीं बल्कि नाक पर चढ़कर ही नृत्य करते जा रहे हैं और विश्व में अपने देश का नाम अगुवा के रूप में प्रतिष्ठित करनेवाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बस समय की चाल भांपने को विवश हैं तो पूरे देश में अपना प्रभाव रखनेवाले गृहमंत्री अमित शाह भी पानी के सर के ऊपर से बह जाने की धृष्टता करने की छूट दिये जा रहे हैं। लेकिन, यह बेऔकात बात कोई करता है तो उसके पीछे कोई तो है, यह केजरीवाल के वश की बात नहीं ! शाहीनबाग के समय केजरी की चुप्पी, अनदेखी यूं ही नहीं थी। सारा प्रायोगिक था, प्रायोजित था। केजरी उस घातक प्रयोग के कैरियर, मध्यस्थ और लाभार्थी थे। किसी संगठन/संस्था की ऐसी न क्षमता थी, न ही उन्हें आवश्यकता थी कि सौ दिन तक लंगर चलाये और नकदी भी दे। संख्या भी भुगतान का समानुपातिक था। यह स्पष्ट है कि शाहीनबाग की योजना कम्युनिस्टों की बनाई हुई थी और मुख्य प्रायोजक कांग्रेस थी। अगर यह सत्य नहीं होता तो सोनिया गांधी के बोल ऊँचे नहीं होते, निर्णय लेने, आर पार की बात तो कतई उनकी जिह्वा पर नहीं आती। कम्युनिस्टों को पता है, अब केरल जैसा कमाल नहीं हो सकता। सोनिया गांधी को पता है, उनके लाल का हाल कैसा है। दोनों ने मिलकर तीसरा विकल्प ढूंढा और मदारी के हाथ में आ गये केजरी। कम्युनिस्ट जमूरे की भूमिका में रहते आये हैं। केजरी अपने पुनर्स्थापित होने की लालच में सब करते गए। सोनिया समझ गयी हैं, वापसी तो गई, चैन से रहना भी मुहाल होनेवाला है। इसलिए क्यों न कोई काम किया जाये, जिससे अपना काम तो होता जाये, पर, नाम न उजागर हो ! ताहिर एंड कंपनी का मुखिया अरविंद केजरीवाल इसके लिए उपयुक्त हथियार था।
वोट खरीदने में इतने पैसे खर्च हुए जिसका हिसाब और अंदाजा पूरे देश को अब तक ठीक से नहीं लग पाया है। वोट खरीददारी में ताहिर जैसे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लफंगे काम आये और सभी को वरदहस्त वरदान दिया गया था कि कुछ भी करो, हम संभाल लेंगे।
अभी कोरोना कहर के इस कारुणिक संकट में केजरीवाल ने जो किया है, वह कहीं से भी क्षम्य नहीं है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी की चुप्पी इस शंका को पुष्ट करती है कि इसमें सबकी मिली भगत है। जहाँ पूरे देश में आत्मरक्षार्थ घर में पड़े रहने का कठोर निर्देश दिया गया है, उसमें केजरीवाल की करतूत मानवीयता के विरुद्ध है, केन्द्र सरकार के आदेश का अपमान है, उसकी अवमानना है। केजरी के झूठे दावे सबको छल रहे हैं। इस वक्त जो जहाँ है, वहीं रहे, ऐसी स्थिति में रहे। लेकिन, इसमें केजरी का राजनीतिक दोगलापन सामने आ गया। एक ओर कहा कि जो जहां हैं, वहीं रहें और उन्हें सारी सुविधाएं दी जायेंगी। दूसरी ओर उनको यह कह कर डराया गया कि लॉकडाऊन की अवधि बढ़ेगी, यह तीन महीने तक जायेगी और इतने दिन हम नहीं खिला सकते ! फिर चिह्नित कर बिहार उत्तर प्रदेश के गरीब और मजदूर लोगों को सोये से जगा जगा कर जबरन बस में ढूंस ढूंसकर दिल्ली की सीमा पर छोड़ दिया। इसके दो लाभ, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वतः अपने लोगों की चिंता करेंगे। अपना काम, खर्च हल्का और उत्तर प्रदेश, बिहार में तबाही की सौगात पहुंच जायेगी। दूसरा सबसे बड़ा लाभ का लालच यह कि इस भगदड़ से टोटल लॉकडाऊन की सफलता को प्रभावित कर उसे प्रभावहीन कहा जा सकेगा। इससे केन्द्र सरकार बदनाम होगी और इसका नुकसान तो होगा ही होगा।
बिहार, उत्तर प्रदेश के लोगों से एलर्जी रखनेवाले केजरीवाल भूल जाते हैं कि उनकी पहली नौकरी बिहार में ही थी। वह जमशेदपुर (तब बिहार, अब झारखंड) में पदास्थापित थे। उनके पिता भी बी.आई.टी.,मेसरा, रांची ( तब बिहार) के विद्यार्थी थे।
केजरीवाल को समझने के लिए उनके फ्लैश बैक नहीं, फ्लैश ब्लैक में जाना चाहिए।
केजरीवाल कम्युनिस्ट, कांग्रेस की तो उपज नहीं हैं, किन्तु, उनका जन्म करप्शन की कोख से ही हुआ है। राजस्व विभाग में उपायुक्त पद पर आसीन अरविंद केजरीवाल का सेवा काल प्रश्नों की सीमा रेखा में अब तक मूक दर्शक बना है। देख रहा है कि कोई तो उसको यथार्थ के चबूतरे पर बिठाये ताकि वह केजरी के करप्शन कांड का सार्वजनिक वाचन कर सके !
मेकैनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद केजरीवाल टिस्को (टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी/ सम्प्रति टाटा स्टील) में तीन वर्ष बिताने के पश्चात और भारतीय राजस्व सेवा ( इंडियन रेवेन्यू सर्विसेस) में दिल्ली राजस्व उपायुक्त बनने के मध्य कलकत्ता गये थे। मिशनरीज़ ऑफ क्रिश्चियनिटी को मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी नाम से चलाते हुए भारतवर्ष की हवा में ईसाइयत के विषाणु स्प्रे करते हुए तथाकथित रूप से एशियाई मदर तक कहलानेवाली अंजेज़ गोंक्स बोजाक्सू उर्फ मेरी टेरेसा बोजाक्सू अर्थात् मदर टेरेसा ने अरविंद केजरीवाल को अपना स्नेहिल बंदा बना लिया था। यह निरीह मातातुल्य दीखनेवाली, दीन दुखियों की सेवा में मगन रहकर एड्स पीड़ित, कोढ़ पीड़ित रोगियों के लिए देवमाता कहलानेवाली महाममतामयी मदर द ग्रेट टेरेसा ने पूरे राष्ट्र में अपने मिशन कंवर्जन का कोढ़ इस चतुराई से फैलाया कि आज उनके नाम पर आश्चर्यजनक रूप से हमारे बंधु बांधव लड़ने भिड़ने को उद्दत हो जाते हैं।
केजरी फिर रामकृष्ण मिशन गये थे। वहां जाकर श्रीमान् अरविंद ने सनातन धर्म संस्कृति की खूबियां पढ़ने के साथ साथ कमजोरियों को गहनता से परखा और दिल्ली आकर नेहरू युवा केन्द्र से जुड़ गये। मंज़िल मिल गई। सोनिया सम्पर्क की सकारात्मकता की दिशा में सक्रिय हो चली। राजस्व उपायुक्त कार्यकाल में भी केजरी ने कुछ कारनामे किये थे, जिसके कारण उच्च उच्चतर शिक्षा का बहाना बना कर दो साल तक छुट्टी बितानी पड़ी थी। वापस आने पर डेढ़ वर्ष तक बिना किसी प्रभाग के लगे रहे और आखिरकार मजबूरन नौकरी छोड़नी पड़ी थी। इसे समाज सेवा, देश सेवा का मन बनाना बताया गया। पैसे तो आ ही गए थे, अण्णा हजारे को आगे कर पब्लिक परिचय किया, उल्लू सीधा होते दिखा नहीं कि अण्णा को ढेंगा दिखा दिया। अण्णा हजारे अपने जीवन पर बनी फिल्म के ट्रेलर लांच पर आये थे तो पूछा, केजरीवाल के किये पर कोई कमेंट ??
अण्णा गुस्से में नहीं आये, गंभीर हो गए । बोले, उसके बारे में क्या कहें ? उससे बड़ा ... छोड़िए .. और वह आगे बढ़ गए थे ! आप हजारे की आत्मिक पीड़ा को भांप सकते हैं।
देश की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने वाले, लाखों लोगों को मौत के मुहाने की ओर धकेलने का षड्यंत्र करनेवाले अरविंद केजरीवाल पर केन्द्र सरकार को इतना सख्त कदम उठाना चाहिए कि आनेवाले दिनों में कोई व्यक्ति/संस्था ऐसी अमानुषिक व अशांति फैलाने वाले कृत्य के बारे में सोचते ही कांप जाये।
एक बात और :
अटपटी लगनेवाली यह बात - कोरोना के मकड़जाल में दुनिया को फांसकर धंधा करने वाले चीन का तार क्या इस धृष्टता से कोई वास्ता रखता है ? ऐसा भी तो सकता है, चीन ही कम्युनिस्टों द्वारा कांग्रेस की मदद से भारत की आंतरिक संप्रभुता विखंडित करने हेतु इस तरह की घटनाओं का मास्टरमाइंड हो ? यह संदेह इसलिए कि केजरी की औकात नहीं और सोनिया में हिम्मत नहीं ! प्रत्येक बड़े षड्यंत्र का तार इसी प्रकार के अटपटे आकलन से पकड़ में आता है। सीमा पर मोदी की कार्रवाई से पाकिस्तान से अधिक चीन खार खाये था। इसलिए मेरी इस बात पर बिदकने की नहीं, विचार करने की घड़ी है !
★ उमेश सिंह चंदेल