"खुदा गवाह" है हब्बीबुल्लाह नहीं, अली खान के साथ था मैं

ज़माना खराब है, सो पहले ही स्पष्ट कर दूं कि हब्बीबुल्लाह नामक किसी आतंकवादी से मेरा डेढ़ दो सौ किलोमीटर तक का भी कोई वास्ता नहीं है ! मेरी छोड़िए, खुद अली भाई (खान) भी अब मीडिया के समक्ष हब्बीबुल्लाह के संवाद नहीं फेंकते, जिसमें वह अमिताभ बच्चन को धमकाते हैं।
(क्या पता ए टी एस वाला पकड़ के मामला ही उलट दे -- अच्छा अब बचने के लिए अली खान बनने की एक्टिंग !? )
अली खान को "खुदा गवाह" के उस हब्बीबुल्लाह वाली भूमिका हेतु आज भी सराहा जाता है। व्यक्तिगत जीवन में तो माशाअल्लाह कमाल के इंसान हैं। इतने मिलनसार और सरल कि सहसा विश्वास ही नहीं होता, इसी महानुभाव ने हब्बीबुल्लाह को पर्दे पर जीवंत किया होगा। मुकुल एस. आनंद की "खुदा गवाह" (१९९२) के पश्चात अली खान को बड़े बैनर्स की कई फिल्में मिलीं, जिनमें सतीश कौशिक के निर्देशन में बनी अनिल कपूर, श्रीदेवी अभिनीत सुपर फ्लॉप "रूप की रानी चोरों का राजा" भी थी। नौ करोड़ बीस लाख की लागत से बनी इस फिल्म ने मात्र दो करोड़ सत्तर लाख की कमाई की थी। सुनील अग्निहोत्री की फिल्म "अली बाबा चालीस चोर" (२००४) में भी अली खान की महत्वपूर्ण भूमिका थी। वह अलीबाबा (अरबाज खान) के पड़ोसी/चचेरे भाई क़ासिम की भूमिका में थे। पर, यह फिल्म भी खुल जा सिमसिम, खुल जा बॉक्स ऑफिस गाती रह गई। यही हाल "टारजन की बेटी" (२००२) का भी हुआ था।



फिल्मों का चलना, न चलना और मिलना, न मिलना अपने हाथ में नहीं होता। मगर, बॉलीवुड का एक अहम हिस्सा होकर भी वह अपनी ज़मीन, अपनी तहज़ीब को नहीं भूले। एक भले व प्यारे इंसान की पहचान और परिभाषा क्या होती है, अली खान के साथ चंद घड़ियां बिताने के बाद पता चल जाता है। बिहार के स्थापित कलाकारों की जब चर्चा होती है, अली खान भी सूचीबद्ध रहते हैं। शत्रुघ्न सिन्हा की नाईं कुछ बोलने पर खामोश नहीं करते, नो डायलॉगबाजी ! मनोज बाजपेयी की तरह अपने को जबरन का बुद्धिजीवी नहीं बताते। हां, अगर कुछ मिलता जुलता है तो बिहार के प्रथम पुरोधा रामायण तिवारी से, जिन्हें मिलकर क्षेत्रीयता की दीवारें तो टूटती ही थी, स्वजनता और आत्मीयता का सैलाब आ जाता था। भोजपुरी सिनेमा उद्योग के सर्जक महापुरुषों में एक, प्रथम भोजपुरी फिल्म "गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो" के एक मजबूत स्तंभ और "लागी नाहीं छूटे राम" प्रस्तोता तिवारी हमेशा एक बिहारी की नाईं ही जीये। अली खान उसी तरह अपनत्व से भरे कलाकार हैं। नज़र मिलने पर बिन हलो हाय के वह आगे नहीं बढ़ते। आज कृष्णा रिकार्डिंग स्टूडियो, सहारा, गोरेगांव (पश्चिम), मुंबई में बस ऐसी ही ढेर सारी व्यक्तिगत बातें हुईं।
लव यू अली भाई !
★ उमेश सिंह चंदेल