मलाला यूसुफजई को आप भूल गए होंगे। मैं स्मरण कराता हूँ। यह वही पाकिस्तानी लड़की है जिसको २०१४ में कैलास (कैलाश) सत्यार्थी के साथ संयुक्त रूप में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था। इस लड़की ने तालिबानियों की लड़कियों की पढ़ाई पर पाबंदी का पूरजोर विरोध किया था। बी.बी.सी. उर्दू के लिए ब्लॉग/ डायरी लिखते लिखते ग्यारह साल की नाबालिग लड़की मलाला ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा और उसको अचानक विश्व की सर्वप्रिय किशोरी का मान मिल गया। महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के समक्ष तथा हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में बोलने का और बराक ओबामा के साथ बातचीत का अवसर मिला। नोबेल पुरस्कार के अतिरिक्त फिलाडेल्फिया मेरिट अवार्ड, ऑडर ऑफ स्माइल, क्लिंटन ग्लोबल सिटीजन अवार्ड सरीखे दर्जन भर पुरस्कार/ सम्मान से शोभित हैं मलाला। ग्यारह की नन्ही वयस में स्कूल से लौटते वक्त तालिबानी आतंकी की गोली खाने वाली मलाला यूसुफजई आज बाईस की संपूर्ण युवती बन चुकी है। लेकिन, १२ जुलाई, १९९७ को पख्तूनख्वा, पाकिस्तान में जन्मी मलाला (यूसुफजई) के जीवन की दिशा बदलनेवाली उस घटना पर आधारित फिल्म "गुल मकई" उसी नाबालिग बच्ची की बहादुर सोच को सलाम है, उसी जज़्बे की दास्तान है। जयंतीलाल गदा द्वारा प्रस्तुत इस फिल्म के निर्माताद्वय संजय सिंघला और प्रीति विजय जाजू हैं। एच.ई. अमजद खान के निर्देशन में बनी यह फिल्म ३१ जनवरी, २०२० को प्रदर्शित हो रही है।
अंग्रेजी, उर्दू और पश्तो भाषा की जानकार मलाला ने अपनी डायरी का शीर्षक "गुल मकई" रखा, जिसका अर्थ अन्न मकई नहीं होता है। यह वहां की स्थानीय और पश्तो में हेरोइन /अफीम की एक प्रकार/प्रजाति का नाम है। नासमझ पाकिस्तानियों और अफगानिस्तानियों (अफगानों) के अंतर में तालिबानी आतंकी ऐसे ही जहर/ अफीम की तरह पैठते जा रहे हैं -- यही आशय था मलाला यूसुफजई की आपबीती, उसके चिंतन "गुल मकई" का, जिसे भास्वाति चक्रवर्ती ने पटकथा रूप दिया। टेलीविजन की बाल कलाकार रीम शेख ने इसमें मलाला यूसुफजई की भूमिका निभाई है। साथ में हैं -- दिव्या दत्ता, अतुल कुलकर्णी, मुकेश ऋषि, पंकज त्रिपाठी, आरिफ ज़करिया, अभिमन्यु सिंह और ओम पुरी।
(ओम पुरी की यह आखिरी फिल्म है।)
★ उमेश सिंह चंदेल